Sad Poetry
तेरी मुस्कराहट को मैंने अपनी जिंदगी माना
तेरे हर सितम को मैंने अपना मुकद्दर माना।
तुम सच के गलियारों से मुझे झूठ बोलती रही
मैं तुम्हारे हर झूठ पर यकीन करता रहा।
मालूम था मुझे अंजाम - ऐ - इश्क़ तुमसे
फिर भी एक रूह से रूह का रिश्ता बनाता रहा।
तुम बदल गयी वक़्त के साथ गैरों की तरह
और मैं आज भी तेरे इंतज़ार में रोता रहा।
हकीकत मालूम थी मुझे तेरे हर सीतम की
ऐतबार की बुनियाद पर ऐतबार करता रहा।
तुम मेरे आंसुओं से भी ना पिंघल सकी
और मैं तेरी झूठी मुस्कराहट पर भी मरता रहा।
वक़्त बदलेगा तुम थोड़ा और बदल जाना
तुम और तेरी मुस्कराहट हमेशा मेरी जिंदगी रहोगी ।
ना जाने किस वक़्त बंद हो जाएगी मेरी आंखें
जब तक खुली है इनमे बस तेरी ही तस्वीर रहेगी।
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